बुधवार, अगस्त 26, 2009

यादें

तुम्हारे साथ बिताए लम्हों की यादें संजो ली हमने

हर इक उस पल में जिंदगी जी ली हमने

जाने तुम्हें इसका इल्म है भी या नही

कि बस तुम ही जिंदगी बन बैठे हो मेरी

याद कभी तो मेरी भी आती ही होगी तुमको

भूले से ही सही ये एक बार तो बता दे मुझको

लफ्ज बह चुके है सारे रात दिन आँखों की बारिश में

भीगा मन फ़िर भी बैठा है तुम्हारे इंतजार में

समझ नहीं पाए हो हमारे रिश्ते को अभी
वरना ख़ुद को यूं जुदा हमसे रख न पाते कभी

दर्द देने आओ तो भी गम नही हमें

दीदार तो होगा तुम्हारा इसकी खुशी होगी हमें

गुरुवार, अगस्त 14, 2008

सवाल


सवाल बहुत सारे हैं ,

कुछ सीधे ,कुछ उलझे हैं


कुछ सवालो के जवाब मिल जाते हैं

कुछ मुंह ताकते रह जाते हैं

कुछ अपना रास्ता ढूंढ़ लेते हैं

कुछ माझी को ही ढूढते रह जाते हैं


सवाल बहुत सारे हैं

कुछ सीधे ,कुछ उलझे हैं


कुछ दिल को सुकून की चादर में लपेट जाते हैं

कुछ आँखों की नींद ही उड़ा ले जाते हैं

कुछ दिलो-दिमाग के कोहरे को हटा जाते हैं

कुछ घटा की तरह छा जाते हैं


सवाल बहुत सारे हैं

कुछ सीधे ,कुछ उलझे हैं


कुछ उठते गुबार को रोशनी दिखाते हैं

तो कुछ अपना वजूद ही ढूढते रह जाते हैं

अब आ भी जा मौला मेरे

मेरे सवाल तेरा इंतज़ार किए जाते हैं




गुरुवार, मई 22, 2008

श्यामसखा

मन के सागर मे लहरे सी उठती है
सांसे मेरी तेरी खुशबू को तरसतीं हैं
साथ रहे मेरे साथ हर रूप में तेरा
रोशन हो जाए तुझसे कण-कण मेरा
सखा तू ही, पिता भी तू ही,
बरसों इन्तज़ार किया जिसका,
वह प्रियतम भी तू ही
जिस प्रेम में भीगने को तरसता है मन मेरा
वह अहसास, छुअन भी तू ही
समर्पण न जानू, ना ही जानू पूजा करनी
फिर भी दीवानी तू बना ले मुझे अपनी
सारे स्वर मेरे समर्पित हैं तुझको
बस वाणी तू मुझे बना ले अपनी
वदन मेरा सदा वंदन करे तेरा
शब्द भी तेरे और प्रवाह भी हो तेरा
तुझसे ही जीवन मेरा रंगा और बंधा
तू ही श्याम सखा मेरा, मैं तेरी अनुराधा

बुधवार, दिसंबर 13, 2006

रिश्ते

दिल ढूंढता है वो रिश्ते
जो न कभी थे हमारे वास्ते
चल पडे़ उनके पीछे मगर फिर भी
हमसे अलग ही रहे उनके रास्ते

रिश्तों से अपनी आँख मिचौली पुरानी है
मगर हार हर बार हमने ही मानी है
रिश्तों से उठी दर्द की बारिश में
बार-बार जाँ हमने ही गवाँई है

बारिश की उन बूँदों को महसूस किया है हमने
दर्द से अपना दामन चाक-चाक किया है हमने
क्यूँ मेरे साथ नहीं रह पाता?
"मरासिम" जिसका बरसों इंतज़ार किया है हमने

बुधवार, नवंबर 15, 2006

शहर की सिहरन

सांसों का आना जाना आसां समझ बैठे थे
हम कल समझे कि कितना गलत समझ बैठे थे

आती सांस को पाया, जाती सांस में बिखर गया सारा
एक ही पल में ये शहर, सिहर गया सारा

दरवाज़े पर टिकी आ‍ंखे सूनी ही रह गयीं
दश्त तक रो पडा, सिर्फ़ कहानियां रह गयीं

कैसे बेदिल मानूस थे, जिनका ये काम है
क्या उनका कोई अज़ीज़ कभी नही खोया है?

गुनह्गार तो है हम भी जो सह जाते हैं नाइनसाफियां
यू ही शिकायतें करते-करते, गुज़ार देतें है ज़िन्दगानियां

सोमवार, नवंबर 13, 2006

तुम

तुम्हे किसी की ज़रुरत नहीं होती
मगर सबकी किस्मत ऐसी नहीं होती.

हालात सबके होते है जुदा-जुदा
ज़ीस्त सबकी एक ढाचें में ढली नहीं होती.

तुम भी औरों की तरह समझ न पाए हमको
वर्ना तुमने कुछ बातें कही नहीं होतीं.

तुम हमारी दुआओं के मोहताज नहीं फिर भी
बहारों से आबाद रहो ये दुआ है फिर भी.

रविवार, नवंबर 05, 2006

lekin

kahne ko to bahut kuch hai ' lekin'
kaun apna tha ?jisase kahte hum.

sabhi kuch to hai apna magar,
phir bhi begane lagte rahe hum.

sath-sath chalte dono magar
laga sirf koshish kar rahe hai hum

kab tak yun dile jakhm gehre karte
ab unse anjaan ho gaye hum.

chalna jindagi hai, ye maana lekin,
ye safar kab tak ye sochte rahe hum.